मुंगेली के पोस्ट मैट्रिक अनुसूचित जाति बालक छात्रावास में दरारें और टूटी सुविधाएं — RTI में विभाग की चुप्पी ने खोली योजनाओं की पोल

मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । छत्तीसगढ़ सरकार की आदिवासी एवं अनुसूचित जाति विकास योजनाओं की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। लाखों की लागत से बनने वाले सरकारी छात्रावासों का हाल कुछ ऐसा है कि देखने वाला हैरान रह जाए। मुंगेली जिले के शासकीय पोस्ट मैट्रिक अनुसूचित जाति बालक छात्रावास की मौजूदा स्थिति इस बात का सबूत है कि फाइलों में चमकते विकास की तस्वीर जमीनी हकीकत में दरारों और सीपेज से भरी है।
वर्ष 2022-23 में स्वीकृत अतिरिक्त निर्माण कार्य, जिसे छात्रों के लिए बेहतर सुविधा के तौर पर पेश किया गया था, अब महज डेढ़ साल में ही जर्जर होने लगा है। नई दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं, जहां मजबूती होनी चाहिए थी, वहां अब नमी और सीलन का राज है।

पुराना भवन तो और भी बदहाल है। दीवारों और छत पर पानी की सीपेज के कारण जगह-जगह पपड़ी जैसी परत उखड़ चुकी है। छत के टुकड़े झड़ने से छात्रों की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। बारिश के मौसम में पानी टपकना आम हो गया है। शौचालयों में दरवाजे टूट चुके हैं, जिससे छात्रों को शर्मिंदगी और असुविधा का सामना करना पड़ता है। साफ-सफाई की स्थिति भी चिंताजनक है — बदबू, नमी और टूटी फिटिंग्स से पूरी व्यवस्था चरमराई हुई है।

   RTI में जवाब नहीं, विभाग की चुप्पी संदिग्ध
ग्राम नेवासपुर निवासी अरविंद बंजारा ने मामले को गंभीरता से उठाया। इससे पूर्व उन्होंने आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग, मुंगेली से आरटीआई एक्ट 2005 के तहत जिले के छात्रावासों और आश्रमों में हुए निर्माण एवं मरम्मत कार्यों की पूरी जानकारी मांगी। कानून के मुताबिक, विभाग को 30 दिन के भीतर सूचना देनी होती है। लेकिन नियत समय सीमा बीत जाने के बाद भी कोई जानकारी नहीं दी गई। यह चुप्पी और भी ज्यादा सवाल खड़े करती है — क्या विभाग के पास छुपाने के लिए कुछ है?
सूचना न मिलने के बाद अरविंद बंजारा ने विभाग के खिलाफ प्रथम अपील दर्ज की है। उनका कहना है —
सरकारी योजनाओं के नाम पर भारी-भरकम बजट खर्च हो रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत में छात्रों को टूटी छत और बदबूदार शौचालय मिल रहे हैं। यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का खुला खेल है।

                  छात्राएं नाराज़
छात्रों का कहना है कि यहां पढ़ाई से ज्यादा चिंता सुरक्षा और सुविधा की है। एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा — बारिश में पानी टपकता है, प्लास्टर गिरता है, और शौचालय में दरवाजा नहीं है। हम शिकायत करते हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। वहीं अरविंद बंजारा का कहना है कि अगर समय रहते उचित कार्यवाही नहीं हुई, तो किसी भी दिन बड़ा हादसा हो सकता है। भवन की छत से गिरते टुकड़े गंभीर चोट का कारण बन सकते हैं।

         कागजों में विकास, जमीन पर दरारें
यह मामला सिर्फ एक छात्रावास तक सीमित नहीं है। कई सरकारी भवनों में घटिया निर्माण की शिकायतें लगातार सामने आती हैं। लेकिन जब आरटीआई के जरिए सवाल पूछे जाते हैं, तो जवाब देने से विभाग बचता है। इससे यह साफ होता है कि पारदर्शिता केवल भाषणों में है, काम में नहीं।
अब सवाल यह है — क्या आदिवासी और अनुसूचित जाति के छात्रों के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार की जांच होगी, या यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा?

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