मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । शासकीय प्री मैट्रिक आदिवासी बालक छात्रावास, लोरमी का भवन बुरी तरह जर्जर हो चुका है, जहां रहने वाले आदिवासी छात्र बदतर हालात में जीवन जीने को मजबूर हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा एक समाचार पोर्टल के माध्यम से सामने आया है, जिसमें छात्रावास भवन की भयावह स्थिति को उजागर किया गया है। अरविंद बंजारा ने इससे पूर्व इस मुद्दे को लेकर आरटीआई एक्ट 2005 के तहत आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग, मुंगेली से छात्रावासों और आश्रमों में हुए निर्माण एवं मरम्मत कार्यों की जानकारी मांगी थी। लेकिन विभाग द्वारा तय समय-सीमा में कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई, जिससे पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। सूचना न मिलने के चलते अरविंद बंजारा ने विभाग के खिलाफ प्रथम अपील दर्ज की है। उनका कहना है कि लोरमी का यह छात्रावास वर्षों से जर्जर हालत में है—दीवारों में दरारें, सीलन, छतों से टपकता पानी और शौचालयों की दयनीय स्थिति जैसी समस्याओं के बीच छात्र रह रहे हैं। यह पूरी स्थिति न केवल प्रशासनिक उदासीनता को उजागर करती है, बल्कि आदिवासी बच्चों के भविष्य, शिक्षा और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का गंभीर मामला बनती जा रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब लाखों रुपये छात्रावासों के विकास और मरम्मत के लिए स्वीकृत किए जाते हैं, तो फिर ज़मीनी स्तर पर बदलाव क्यों नहीं दिखता? RTI के जवाब से बचना इस बात का संकेत हो सकता है कि विभाग के भीतर कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है। इस घटनाक्रम ने छत्तीसगढ़ में आदिवासी विकास योजनाओं की पारदर्शिता और उनकी निगरानी व्यवस्था पर गहन प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि विभाग इस मामले में क्या कार्रवाई करता है—क्या पारदर्शिता अपनाई जाएगी या फिर फाइलों में ही जवाब दफ्न रह जाएंगे?
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