विश्व आदिवासी दिवस पर मुंगेली में भव्य उत्सव – संस्कृति, एकता और अधिकारों की गूंज, पारंपरिक वेशभूषा में सजी आदिवासी पहचान, सम्मान, संवाद और समर्पण का बना मंच

मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर संस्कृति, एकता और अधिकारों की गूंज के साथ भव्य एवं गरिमामय आयोजन हुआ, जिसमें आदिवासी समाज की परंपरा, संघर्ष और गौरवपूर्ण इतिहास को याद करते हुए सामाजिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक अधिकारों पर चर्चा की गई। इस अवसर पर पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं विधायक पुन्नूलाल मोहले, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीकांत पांडेय, नगर पालिका अध्यक्ष रोहित शुक्ला, जिलाध्यक्ष साहू समाज पुहुप राम साहू और कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. चंद्रशेखर सिंह सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे। पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं और बच्चों ने अपनी सांस्कृतिक पहचान का भव्य प्रदर्शन किया, वहीं सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, प्रतियोगिताएं, विचार-विमर्श और सम्मान समारोह ने कार्यक्रम को जीवंत बना दिया। वक्ताओं ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1982 में आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने के निर्णय की पृष्ठभूमि बताते हुए कहा कि आज भी आदिवासियों को धरातल पर न्याय, सम्मान और संसाधनों से वंचित किया जा रहा है, इसलिए समाज को संवैधानिक मार्ग से संगठित होकर आगे बढ़ना होगा। 

मुख्य अतिथि पुन्नूलाल मोहले ने आदिवासी समाज को देश की आत्मा और इसकी जड़ों का प्रतीक बताते हुए बोली, वेशभूषा, संस्कृति और शिक्षा से नई पीढ़ी को जोड़ने का आह्वान किया। प्रो. सिंह ने हर बच्चे की शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात कही, जबकि पुहुप राम साहू और विरेन्द्र मरावी ने समाज की सभ्यता, संगठन और अधिकारों के प्रति सजग रहने पर जोर दिया। आदिवासी वेशभूषा प्रतियोगिता में कु. मोंशिका ध्रुव (प्रथम), कु. राधिका छेदईया (द्वितीय) और अरुण कुमार ध्रुव (तृतीय) को प्रशस्ति पत्र, मेडल और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में विरेन्द्र मरावी, उत्तम ध्रुव, जिगेश्वर सिंह ध्रुव, कृष्ण कुमार ध्रुव समेत अनेक समाजसेवी और पदाधिकारी मौजूद रहे। साथ ही 1 अगस्त को पेनवासी मनोहर सिंह मरकाम एवं सुखी राम मरकाम की स्मृति में उनके परिजनों द्वारा 15×12 वर्गफुट का भवन निर्माण कर गोड़ समाज मुंगेली को समर्पित किया गया, जिसे समाज ने श्रद्धापूर्वक स्वीकारा। यह आयोजन केवल उत्सव नहीं, बल्कि अधिकारों, आत्मसम्मान और सांस्कृतिक गर्व का संदेश देने वाला प्रेरक मंच साबित हुआ, जिसमें एकजुट होकर अपने हक और अस्तित्व के लिए आगे बढ़ने की हुंकार गूंजी।

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