छत्तीसगढ़ । छत्तीसगढ़ प्रसार । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बिजली बिल हाफ योजना में एक और बड़ा बदलाव करते हुए सीमा 100 यूनिट से बढ़ाकर 200 यूनिट कर दी है। सरकार इसे 45 लाख परिवारों के लिए राहत की बात कह रही है, लेकिन जमीन पर सवाल इससे कई गुना भारी हैं। आखिर बार-बार बदलती इस योजना के पीछे मंशा क्या है? क्या सरकार वाकई जनता को राहत दे रही है, या यह सिर्फ राजनीतिक डैमेज कंट्रोल है?
महत्वपूर्ण सवाल 1 - जब 400 यूनिट से अचानक 100 यूनिट किया गया था, तब क्या हुई थी जनता की बचत? या बढ़ा था बिल?
सिर्फ तीन महीने पहले अगस्त में सरकार ने 400 यूनिट पर मिलने वाला हाफ बिल अचानक घटाकर 100 यूनिट कर दिया था।
परिणाम? हजारों परिवारों के बिल 2 से 3 गुना तक बढ़ गए।
कई उपभोक्ता सीधे बोझ के नीचे आ गए।
अब अचानक 200 यूनिट कैसे संभव हो गया?
क्या खजाना इतने जल्दी भर गया, या फिर सरकार विरोध और आक्रोश देखकर मजबूर हुई?
महत्वपूर्ण सवाल 2 - यह योजना क्या आर्थिक रूप से टिकाऊ है, या बिजली विभाग को कर्ज में धकेला जाएगा?
200 यूनिट तक हाफ बिल देने का सीधा मतलब है कि सरकार को हर महीने करोड़ों की सब्सिडी देनी होगी।
जब विभाग पहले से घाटे में है...
जब स्मार्ट मीटर और बिलिंग में अनियमितता की शिकायतें रोज़ सामने आ रही है...
तब एक और भारी सब्सिडी क्या बिजली व्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचाएगी?
आर्थिक जानकार साफ कह रहे हैं-
अगर सब्सिडी बढ़ी तो बिजली कंपनी की गुणवत्ता और आपूर्ति पर असर पड़ेगा।
आगे चलकर लाइट कटौती, लाइन फॉल्ट और बिजली संकट जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
महत्वपूर्ण सवाल 3 — बार-बार बदलाव से जनता का भरोसा क्यों टूट रहा है?
सरकार की नीति पिछले 1 साल में 4 बार बदली
पहले 400 यूनिट हाफ
फिर 200 यूनिट
फिर अचानक 100 यूनिट
अब फिर 200 यूनिट!
क्या यह कोई स्थिर नीति है?
या जनता पर प्रयोग करके देखा जा रहा है कि कौन सा कदम राजनीतिक रूप से फायदेमंद है?
यही वजह है कि लोग कह रहे हैं- बिल क्यों कम कर रहे हैं... पहले भरोसा तो बढ़ाइए।
महत्वपूर्ण सवाल 4 - क्या स्मार्ट मीटरिंग और बिलिंग में गड़बड़ी को जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है?
राज्य में हजारों शिकायतें हैं
बिल गलत आ रहा
मीटर गलत रीडिंग दिखा रहा
मीटर रफ्तार पकड़ रहा
मीटर की सर्विसिंग नहीं
मीटर में यूनिट अचानक उछल रहे
लेकिन सरकार का पूरा फोकस सिर्फ ‘हाफ बिल’ का ढोल बजाने में है।
महत्वपूर्ण सवाल 5 - क्या 1 दिसंबर की समय सीमा सिर्फ चुनावी सजावट है?
नई योजना 1 दिसंबर 2025 से लागू होगी।
जनता पूछ रही है
अगर जनता से इतना प्रेम है, तो तत्काल लागू क्यों नहीं?
क्या सरकार समय खरीद रही है?
कहीं ये घोषणा सिर्फ राजनीतिक तूफान से बचने के लिए तो नहीं?
राहत की आड़ में गहरी चुनौतियाँ - योजना अच्छी, लेकिन विश्वास खत्म
✔ 200 यूनिट तक राहत देना अच्छा कदम है
✔ गरीब और मध्यवर्ग को इससे फायदा मिलेगा
✔ लगभग ₹400 तक की बचत होगी
लेकिन…
✘ नीति में स्थिरता नहीं
✘ आर्थिक दबाव बढ़ेगा
✘ बिजली विभाग की हालत बिगड़ सकती है
✘ स्मार्ट मीटरिंग अनियमितता का कोई समाधान नहीं
✘ जनता का भरोसा लगातार कम हो रहा है
सरकार को अब सिर्फ घोषणाएं नहीं,
एक मजबूत, पारदर्शी और स्थिर बिजली नीति बनानी होगी
तभी जनता इस योजना को राहत के रूप में देखेगी...
वरना इसे राजनीतिक जुगाड़ से ज्यादा कुछ नहीं माना जाएगा।
सरकार की पहल पर जनता को मिल सकती है वास्तविक राहत
जहाँ एक ओर योजना के आर्थिक और प्रशासनिक पहलुओं पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के बड़े हिस्से में इस निर्णय का स्वागत भी हो रहा है। कई गरीब, निम्नवर्गीय और मध्यमवर्गीय उपभोक्ता इसे लंबे समय से अपेक्षित राहत के रूप में देख रहे हैं। महंगाई और बढ़ते बिजली बिलों के बोझ के बीच 200 यूनिट तक हाफ बिल की सुविधा जनता के लिए प्रत्यक्ष आर्थिक फायदा लेकर आएगी।
सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि
छोटे घर, किराएदार, ग्रामीण उपभोक्ता और बुजुर्ग दंपती जैसे वर्गों की मासिक बचत में बड़ी वृद्धि होगी। जिन परिवारों के लिए ₹800–₹900 का बिल हर महीने भारी पड़ता था, उनके लिए अब ₹400–₹450 की देनदारी वास्तव में बड़ी राहत है।
सरकार की इस घोषणा ने उन परिवारों में उम्मीद जगाई है जिनकी आय सीमित है और जिनका घरेलू खर्च महीने-दर-महीने बढ़ रहा है। यह भी माना जा रहा है कि योजना के विस्तार से ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की नियमितता, मीटरिंग सिस्टम और सब्सिडी प्रबंधन में सुधार की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं। अगर सरकार इस दिशा में लगातार निगरानी रखे, तो यह कदम ऊर्जा क्षेत्र में एक स्थायी सुधार का मार्ग भी खोल सकता है। कुल मिलाकर, यह फैसला जनता के लिए राहत और उम्मीद दोनों लेकर आया है। अब ज़रूरी यह है कि सरकार योजना को स्थिर, पारदर्शी और बिना रुकावट के लागू करे, ताकि यह राहत वाकई उन लोगों तक पहुँचे जिनके लिए यह योजना बनाई गई है।
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