जयपुर । छत्तीसगढ़ प्रसार । आज के दौर में सेवा शब्द का अर्थ धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। कभी यह शब्द त्याग, करुणा और मानवता की भावना का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन अब यह कैमरे के सामने मुस्कुराने का एक अवसर बनता जा रहा है। राजस्थान के जयपुर से सामने आया एक वीडियो इस सोच को और पुख्ता करता है, जहां बीजेपी की महिला कार्यकर्ता ने अस्पताल में एक मरीज को बिस्किट का पैकेट दिया, फोटो खिंचवाई और फिर वही बिस्किट वापस ले लिया।
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में अन्नपूर्णा मुहिम के अंतर्गत एक असहाय महिला को मिली सच्ची सहायता यह साबित करती है कि सेवा अभी भी जीवित है, बशर्ते वह दिल से की जाए, न कि कैमरे के लिए।
जयपुर की घटना: जब सेवा बन गई फोटोशूट का साधन
राजस्थान में बीजेपी की ओर से मनाए जा रहे सेवा पखवाड़ा के तहत जयपुर के आरयूएचएस अस्पताल में एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ, जिसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया। वीडियो में एक महिला कार्यकर्ता मरीज को बिस्किट का पैकेट देती दिखती हैं, जैसे ही कैमरा क्लिक करता है, वह वही पैकेट वापस ले लेती हैं।
यह दृश्य इतना प्रतीकात्मक है कि अब यह ‘सेवा’ से ज्यादा ‘दिखावे’ की परिभाषा बन गया है।
बताया जा रहा है कि यह आयोजन श्योपुर मंडल के वार्ड संयोजक वीरेंद्र सिंह द्वारा किया गया था। उद्देश्य था मरीजों की सेवा, लेकिन नतीजा निकला फोटोशूट का तमाशा।
सोशल मीडिया पर लोग इसे सेवा नहीं, स्वार्थ का प्रदर्शन बता रहे हैं। एक यूजर ने लिखा — सेवा के नाम पर संवेदना की भी नीलामी हो गई है।
मुंगेली की मिसाल: जब करुणा ने कैमरे को मात दी
इसी देश के दूसरे कोने में, छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के लोरमी ब्लॉक के ग्राम खाम्ही में एक नज़ारा बिल्कुल विपरीत देखने को मिला। यहाँ संत रामपाल महाराज द्वारा संचालित अन्नपूर्णा मुहिम के अंतर्गत लता निषाद नामक गरीब महिला को जीवन की जरूरी राहत सामग्री दी गई, बिना किसी प्रचार के, बिना किसी कैमरे की नीयत के। पति के निधन के बाद तीन छोटे बच्चों का बोझ उठाने वाली लता निषाद मजदूरी और छोटी खेती से किसी तरह जीवनयापन कर रही थीं।
अन्नपूर्णा मुहिम ने उनके घर में न केवल राशन पहुँचाया, बल्कि सम्मान और आशा भी लौटाई।
लता निषाद ने नम आँखों से कहा — इतनी मदद तो कोई अपना भी नहीं करता.ल, यह तो सच में भगवान की दया है।
ग्राम सरपंच रमेश मरावी ने इसे समाज के लिए प्रेरणा बताया और कहा कि ऐसी सेवाएं ही असली राष्ट्र सेवा हैं।
दो तस्वीरें, दो मानसिकताएँ
जयपुर की घटना में सेवा के नाम पर फोटो खिंचवाने की होड़ दिखी, मानो जरूरतमंद की मदद नहीं, बल्कि अपनी इमेज चमकाना मकसद था। वहीं मुंगेली की घटना में न कोई मंच था, न कैमरा, न प्रचार — फिर भी वहां एक गरीब की थाली भरी, उसके बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आई।
सेवा का असली चेहरा
जयपुर की तस्वीर पूछती है, क्या अब सेवा भी कैमरे के बटन पर निर्भर हो गई है?
मुंगेली का उदाहरण जवाब देता है, नहीं, जहां दिल में संवेदना हो, वहां कैमरे की जरूरत नहीं पड़ती।
आज समाज को यह तय करना होगा कि हमें किस दिशा में जाना है, फोटो के लिए की जाने वाली झूठी ‘सेवा’ की ओर,
या फिर उन अनदेखे लोगों की ओर, जो बिना प्रचार के भी दूसरों के आंसू पोंछ रहे हैं। क्योंकि सच्ची सेवा वही है जो लेंस से नहीं, दिल से की जाए।
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