मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । यह खबर किसी भी संवेदनशील समाज की रूह कँपाने वाली है। यह घटना सुनकर लोगों को फिल्म ' गब्बर इज़ बैक' का वह दिल दहला देने वाला दृश्य याद आ जाता है, जिसमें डॉक्टर की लापरवाही से एक मरीज की जान चली जाती है और पूरा सिस्टम मूकदर्शक बना खड़ा रहता है। फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म में यह दृश्य काल्पनिक था, लेकिन लोरमी अस्पताल की यह घटना वास्तविक त्रासदी है। जिस गलती को फिल्म में देखकर लोग सिहर जाते थे, वही गलती अब हमारे समाज में जिंदा हकीकत बन चुकी है। सवाल यह है कि जब सिनेमा के काल्पनिक दृश्य हमें हिला सकते हैं, तो असली जिंदगी की यह अमानवीय लापरवाही आखिर प्रशासन और सरकार को क्यों नहीं झकझोर पा रही?
लोरमी के शासकीय 50 बिस्तर हॉस्पिटल में चिकित्सा लापरवाही की हदें पार कर दी गई हैं। प्रसव ऑपरेशन (डिलीवरी ऑपरेशन) के दौरान डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन की गंभीर चूक के चलते एक गर्भवती महिला के गर्भाशय में काटन कपड़ा ही छोड़ दिया गया।
इस अमानवीय लापरवाही के कारण महिला की हालत तेजी से बिगड़ गई। परिवारजन उसे जिला अस्पताल ले गए, मगर वहां भी उचित व्यवस्था और तत्काल राहत न मिलने पर उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। वहां दूसरी बार ऑपरेशन कर महिला की जान बचाई जा सकी। इस पूरी प्रक्रिया में पीड़िता को न सिर्फ शारीरिक कष्ट झेलना पड़ा, बल्कि मानसिक पीड़ा और आर्थिक बोझ भी उस पर और उसके परिवार पर भारी पड़ा।
बार-बार हो रही घटनाएँ – प्रशासन मौन
सूत्रों और ग्रामीणों का कहना है कि यह घटना कोई पहली नहीं है। पिछले कुछ महीनों में तीन से चार बार ऐसे ही मामले लोरमी अस्पताल में घट चुके हैं। यानी लापरवाही और असावधानी अब यहाँ अपवाद नहीं बल्कि “नियम” बन चुकी है। सवाल यह है कि इतनी बड़ी घटनाओं के बावजूद जिम्मेदार डॉक्टरों और प्रबंधन के खिलाफ अब तक ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या प्रशासन मरीजों की जान से खिलवाड़ को हल्के में ले रहा है?
भरोसा टूट रहा है सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से
शासकीय चिकित्सालयों का उद्देश्य गरीब और आम जनता को सुरक्षित व निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना है। लेकिन जब सरकारी अस्पताल ही मौत के अड्डे में बदलने लगें, तो आम आदमी का भरोसा किस पर रहेगा?
लोरमी की इस घटना ने न सिर्फ स्थानीय अस्पताल की छवि को कलंकित किया है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
भीम रेजिमेंट का अल्टीमेटम
भीम रेजिमेंट छत्तीसगढ़ जिला इकाई, मुंगेली ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि 72 घंटे के भीतर आरोपी डॉक्टर, प्रबंधन और संबंधित कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती, तो 73वें घंटे से आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि इस आंदोलन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी शासन और प्रशासन की होगी।
प्रशासनिक चुप्पी और जनता का आक्रोश
सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसे जघन्य लापरवाही मामलों पर स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन अब तक मौन क्यों है? क्या मानव जीवन का मूल्य इतना सस्ता हो चुका है कि डॉक्टरों की गैरजिम्मेदारी से मरीज मरें या अपंग हों और सरकार केवल फाइलें पलटती रहे?
ग्रामीणों में आक्रोश है, उनका कहना है कि यदि यह रवैया जारी रहा तो सरकारी अस्पतालों पर पूरी तरह से ताले लगने की नौबत आ जाएगी, क्योंकि अब कोई भी परिवार अपने प्रियजनों को वहां ले जाने का साहस नहीं करेगा।
लोरमी का यह मामला प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र की सच्चाई को उजागर करता है। जब तक शासन-प्रशासन दोषियों को बचाता रहेगा, तब तक ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी और हर बार गरीब जनता ही शिकार बनेगी। अब सवाल यह है कि क्या सरकार जनता के जीवन से खिलवाड़ करने वाले ऐसे लापरवाह डॉक्टरों और प्रबंधकों को बचाएगी या फिर पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाएगी?
फिल्म की उदाहरण
1. फिल्म – गबर इज़ बैक
इस फिल्म में साफ दिखाया गया था कि कैसे प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की लापरवाही और पैसों की भूख से मरीजों की जान चली जाती है। एक सीन में मरीज को बचाया जा सकता था लेकिन डॉक्टर सिर्फ पैसे और प्रोसीजर का हवाला देकर मौत का तमाशा देखते रहते हैं। लोरमी का मामला उसी फिल्मी सीन को सच साबित करता है, जहां इंसान की जान से बड़ा ‘सिस्टम और लापरवाही’ हो गया है।
2. फिल्म – अनारकली ऑफ आरा (साइड सीन)
इसमें भी मेडिकल नेग्लिजेंस का जिक्र है, जहां समय पर इलाज न मिलने से मरीज की जान पर बन आती है।
3. टीवी सीरियल्स और डॉक्यूमेंट्रीज़
कई टीवी सीरियल (जैसे सावधान इंडिया, क्राइम पेट्रोल) में ऐसे केस दिखाए गए हैं, जहां डिलीवरी के दौरान डॉक्टरों ने शरीर के अंदर कैंची/कॉटन छोड़ दिया और मरीज की हालत बिगड़ गई। ये वास्तविक घटनाओं पर आधारित होते हैं।
ऐसे दृश्य पहले हम केवल क्राइम पेट्रोल या फिल्मों में देखते थे, लेकिन अब लोरमी अस्पताल की घटना ने साबित कर दिया है कि सिनेमा में दिखाई जाने वाली लापरवाही असल जिंदगी में हमारे समाज की हकीकत बन चुकी है।
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