छत्तीसगढ़ प्रसार । संपादकीय
मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) ने जेईई मेन 2026 के लिए जो नई एडवाइजरी जारी की है, उसने लाखों छात्रों और उनके माता-पिता की नींद उड़ा दी है। अब 10वीं की मार्कशीट और आधार कार्ड में नाम और जन्मतिथि का विवरण एकदम समान होना अनिवार्य कर दिया गया है। ज़रा सोचिए, लाखों बच्चे जो दिन-रात किताबों और कोचिंग के नोट्स में डूबे हुए हैं, अब उन्हें गणित-फिज़िक्स की जगह आधार-मार्कशीट सुधारने का फॉर्मूला पढ़ना पड़ेगा।
छोटी सी ग़लती, बड़ा अन्याय
हम सब जानते हैं कि माता पिता, पालक ,स्कूल और सरकारी दफ्तरों की लापरवाही के कारण नाम, जन्मतिथि या पिता के नाम में अक्सर स्पेलिंग की गड़बड़ी हो जाती है। कहीं "Ravi Kumar" और कहीं "Ravikumar", कहीं "Shyamlal" तो कहीं "Shyam Lal"।
अब बताइए, क्या एक स्पेस या अक्षर का फर्क किसी छात्र की मेहनत और भविष्य को तय करेगा?
आधार और बोर्ड – सुधार की जटिल राजनीति
आधार अपडेट कराने के लिए महीनों चक्कर काटने पड़ते हैं। ग्रामीण बच्चों के लिए तो आधार केंद्र तक पहुंचना ही मुसीबत है।
और अगर 10वीं की मार्कशीट में गड़बड़ी हो गई तो समझ लीजिए, कोर्ट, नोटरी, हलफनामा, बोर्ड दफ्तर – यह चक्कर सालभर खींच सकता है।
यानी बच्चा पढ़ाई कम, दफ्तर की लाइन ज़्यादा काटेगा।
एनटीए का रवैया – सिस्टम आसान, स्टूडेंट्स परेशान
एनटीए को छात्रों की सुविधा नहीं, बल्कि अपने रिकॉर्ड और सिस्टम की सफाई ज़्यादा प्यारी है।
नाम में स्पेस का फर्क भी फॉर्म रिजेक्ट करने का आधार बन सकता है। यह प्रशासनिक तानाशाही नहीं तो और क्या है?
सवाल यह है कि जब देश के प्रधानमंत्री बार-बार “Ease of Doing Business” और “Digital India” की बात करते हैं, तब “Ease of Giving Exam” क्यों नहीं हो सकता?
शिक्षा या नौकरशाही का जाल?
15 लाख से ज़्यादा छात्र हर साल जेईई मेन में बैठते हैं। इनमें से अधिकांश मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास परिवारों के होते हैं।
माता-पिता दिन-रात मेहनत करके बच्चों को कोचिंग भेजते हैं, और अब सिस्टम कह रहा है –
“पहले आधार और मार्कशीट मिलाओ, फिर ही इंजीनियर बनने का सपना देखो।”
यह शिक्षा नहीं, बल्कि ब्यूरोक्रेसी का जाल है।
समाधान क्या है?
छात्रों को परेशान करने की बजाय एनटीए को चाहिए कि –
छोटे-मोटे अंतर को मान्य किया जाए।
छात्रों को एक अंडरटेकिंग/एफिडेविट का विकल्प दिया जाए।
डिजिटल वेरिफिकेशन सिस्टम लाया जाए, जिससे बच्चे फॉर्म भर सकें और बाद में सुधार का समय मिले।
सवाल सरकार से
क्या एक अक्षर की गलती पर देश का टैलेंट बर्बाद कर देना न्याय है?
क्या बच्चों को पढ़ाई छोड़कर आधार केंद्र और बोर्ड दफ्तर की दौड़ लगाने पर मजबूर करना ही शिक्षा सुधार है?
अगर सरकार वाकई युवाओं को “स्टार्टअप इंडिया”, “स्किल इंडिया” और “न्यू इंडिया” का सपना दिखा रही है, तो पहले इतना तो सुनिश्चित करे कि बच्चों का भविष्य एक स्पेस या कॉमा की बलि न चढ़े।
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