मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार। छत्तीसगढ़ के आदिवासी विकास योजनाओं की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। ग्राम नेवासपुर निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता-पत्रकार अरविंद बंजारा ने आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग, मुंगेली के खिलाफ प्रथम अपील दर्ज की है। उन्होंने विभाग से आरटीआई एक्ट 2005 के तहत छात्रावासों और आश्रमों में हुए मरम्मत, रंग-रोगन और निर्माण कार्यों की जानकारी मांगी थी, लेकिन नियत समय सीमा के बाद भी उन्हें कोई सूचना नहीं दी गई।
क्या मांगी थी जानकारी?
अरविंद बंजारा ने 6 जून 2025 को विभाग में एक आरटीआई आवेदन प्रस्तुत कर वर्ष 2023-24, 2024-25 और 2025-26 के दौरान सभी आश्रमों/छात्रावासों में हुए निर्माण कार्य, मरम्मत और रंगाई-पुताई के बिल, वाउचर, उपयोगिता प्रमाण पत्र और पूर्णता रिपोर्ट की सत्यापित प्रति मांगी थी। उन्होंने विशेष तौर पर वर्षवार, माहवार और छात्रावासवार सूचनाएं चाही थीं ताकि यह पता चल सके कि सरकारी धन का उपयोग वास्तव में छात्रों के हित में हो रहा है या नहीं।
समयसीमा में नहीं दी गई जानकारी
आरटीआई अधिनियम की धारा 7(1) के तहत मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर देना अनिवार्य होता है। लेकिन इस मामले में विभागीय जनसूचना अधिकारी/सहायक जनसूचना अधिकारी द्वारा न तो कोई सूचना भेजी गई और न ही कोई अस्वीकार का जवाब। यह न केवल आरटीआई अधिनियम का उल्लंघन है बल्कि विभागीय पारदर्शिता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।
अब अपील के जरिए कार्रवाई की मांग
अब श्री बंजारा ने प्रथम अपीलीय अधिकारी, आयुक्त आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग, नया रायपुर को अपील भेजी है। उन्होंने मांग की है कि उन्हें निःशुल्क सत्यापित जानकारी तत्काल उपलब्ध कराई जाए और समय सीमा में सूचना न देने वाले जिम्मेदार जनसूचना अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए।
कलेक्टर और जिला कार्यालय को भी भेजी गई प्रतिलिपि
इस अपील की एक-एक प्रतिलिपि कलेक्टर मुंगेली और आदिवासी विकास विभाग, मुंगेली को भी भेजी गई है।
जनता का सवाल – आखिर किस बात को छुपाया जा रहा है?
इस प्रकरण ने एक बार फिर सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर कार्य समय पर और गुणवत्ता के अनुसार हुए हैं, तो बिल और उपयोगिता प्रमाण पत्र देने में देरी क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि कागजों पर लाखों खर्च कर दिए गए और ज़मीनी हकीकत कुछ और है?
क्या कहता है कानून?
आरटीआई अधिनियम 2005 में स्पष्ट है कि अगर सूचना समय पर नहीं दी जाती, तो जनसूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाया जा सकता है और अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश की जा सकती है।
अब आगे क्या?
अब देखना यह होगा कि राज्य स्तर का आदिम जाति विकास विभाग इस अपील पर कितनी तेजी से संज्ञान लेता है। यदि अपील के बावजूद भी कार्रवाई नहीं होती, तो मामला राज्य सूचना आयोग तक पहुंच सकता है।
क्या कहते महेंद्र खांडेकर, सहायक आयुक्त, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग मुंगेली , जब इस मामले को लेकर हमने संबंधित वरिष्ठ अधिकारी से संपर्क किया, तो उनका कहना था कि जानकारी भेज दी गई है और वह डाक के माध्यम से प्राप्त होगी। लेकिन आवेदन नियत समय सीमा से कहीं अधिक दिन बीत चुके हैं, और आज दिनांक तक न तो कोई डाक प्राप्त हुई है और न ही कोई जानकारी उपलब्ध कराई गई है।
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