मुंगेली । छत्तीसगढ प्रसार । मुंगेली जिला अस्पताल में डॉक्टरों के समय पर न आने और केबिन में अनुपस्थित रहने से मरीजों को भारी परेशानी हो रही है। इस समस्या के समाधान और विलंब से आने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर युवा कांग्रेस ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। महासचिव अजय साहू ने चेतावनी दी कि यदि समाधान नहीं हुआ तो वे आंदोलन करेंगे। ज्ञापन सौंपने वालों में अजय साहू, विकास खांडे, काशी यादव, चंद्रभान खांडे, अखिलेश दिवाकर, किरण साहू, और अजय यादव शामिल थे।
व्यंग्यकार - अरविंद कुमार
तो चलिए जिला अस्पताल में डॉक्टरों की समय पर अनुपस्थिति पर एक हास्य-व्यंग्य की दुनिया में चलते हैं...
डॉक्टर जी, आप हैं कहाँ?
जिला अस्पताल का दृश्य किसी फिल्मी सेट से कम नहीं है। यहाँ की कहानियाँ इतनी दिलचस्प हैं कि अगर इन पर एक टीवी सीरियल बना दिया जाए तो TRP के सारे रिकॉर्ड टूट जाएँ। सुबह के आठ बजते हैं, सूरज अपनी चमक बिखेरता है, और मरीजों की लाइन अस्पताल के बाहर लंबी होती जाती है। वे सभी उम्मीद की नजरों से अस्पताल के गेट को निहार रहे होते हैं, जैसे कि गेट के खुलते ही उनके सारे दुख-दर्द दूर हो जाएंगे।
लेकिन यहाँ एक समस्या है। हमारे प्यारे डॉक्टर साहब कहीं नजर नहीं आ रहे। कुछ मरीज़ तो इतने सुबह-सुबह आ जाते हैं कि डॉक्टर के आते-आते उनके बीमार होने का असली कारण ही बदल जाता है। मरीज़ों के मन में सवाल उठते हैं – "कहीं डॉक्टर साहब को भी किसी डॉक्टर की जरूरत तो नहीं पड़ गई?" आखिरकार, डॉक्टर भी इंसान हैं और इंसान का काम है बीमार पड़ना।
अस्पताल के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा है: "डॉक्टर का समय: सुबह 9 बजे से 5 बजे तक"। लेकिन यह बोर्ड शायद तभी लिखा गया था जब अस्पताल का उद्घाटन हुआ था। हकीकत में डॉक्टर साहब का समय किसी गुप्त एजेंसी के मिशन जैसा है, जिसका कोई तय समय नहीं होता। मरीज़ों के साथ-साथ खुद अस्पताल के कर्मचारी भी अनुमान लगाते रहते हैं कि आज डॉक्टर साहब कितने बजे आएंगे।
किसी दिन, अगर डॉक्टर साहब समय पर आ जाएं, तो वह दिन अस्पताल के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। एक दिन की बात है, डॉक्टर साहब अचानक ही सुबह 9 बजे प्रकट हो गए। यह खबर बिजली की तरह पूरे अस्पताल में फैल गई। मरीज़ों के चेहरे खिल उठे, नर्सों ने तो फूलों की माला तक तैयार कर ली। डॉक्टर साहब खुद इस अद्भुत घटना से हैरान थे और उन्होंने अपनी घड़ी चेक की कि कहीं गलती से कोई टाइम मशीन में तो नहीं आ गए।
कुछ मरीज़ तो इतने परेशान हो जाते हैं कि वे डॉक्टर को ना पाकर खुद ही डॉक्टर बनने का नाटक करने लगते हैं। "चलो, खुद ही अपना इलाज कर लेते हैं", एक मरीज़ ने कहा। "वैसे भी डॉक्टर साहब वही करेंगे, जो हमें पहले से ही पता है - 'दवाई तीन बार, खाना ठीक समय पर और खूब सारा आराम'।"
डॉक्टर साहब की अनुपस्थिति का सबसे ज्यादा फायदा मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स को होता है। वे अपने नए-नए दवाइयों के नमूने लेकर डॉक्टर के चेम्बर में बैठे रहते हैं और मरीजों से चाय-पानी का इंतजाम कराते हैं। एक दिन की बात है, जब डॉक्टर साहब ने चेम्बर में घुसते ही देखा कि उनके कुर्सी पर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स ने कब्जा जमा रखा है, तो वे खुद को मरीज समझकर बाहर लाइन में खड़े हो गए।
अस्पताल के परिसर में हर किसी के पास डॉक्टर साहब की अनुपस्थिति का कोई न कोई किस्सा होता है। एक नर्स बताती है, "डॉक्टर साहब को ढूंढना ऐसा है जैसे अलीबाबा के 40 चोरों को पकड़ना।" अस्पताल के गार्ड ने तो एक बार मजाक में कहा, "अगर डॉक्टर साहब समय पर आ गए, तो हमें शक होगा कि यह नकली डॉक्टर है।"
अस्पताल का प्रशासन भी इस विषय में हाथ खड़े कर चुका है। एक बार, प्रशासन ने डॉक्टर साहब से उनकी अनुपस्थिति का कारण पूछा। डॉक्टर साहब ने बड़े ही मासूमियत से कहा, "मरीजों को इलाज से ज्यादा डॉक्टर का इंतजार करने में खुशी मिलती है। यह उनके धैर्य की परीक्षा है, और धैर्य एक महत्वपूर्ण गुण है।"
समय बीतता गया, डॉक्टर साहब की अनुपस्थिति एक रहस्य बनती गई। मरीजों ने भी इसे स्वीकार कर लिया। वे अपनी बीमारी का इलाज नहीं, बल्कि डॉक्टर साहब का इंतजार करने का मजा लेने लगे। आखिरकार, डॉक्टर साहब भी हमारे जीवन का हिस्सा हैं, और उनके बिना यह अस्पताल अधूरा सा लगता है।
एक दिन, किसी मरीज ने अस्पताल के बाहर एक पोस्टर चिपका दिया: "डॉक्टर साहब, हम आपको बहुत याद करते हैं। कृपया समय पर आएं।" पोस्टर के नीचे लिखा था: "जिला अस्पताल के समस्त मरीज"। यह पोस्टर इतना लोकप्रिय हुआ कि अस्पताल के बाहर से गुजरने वाले लोग भी उसे देखकर मुस्कुराने लगे।
अंततः, जिला अस्पताल में डॉक्टरों की समय पर अनुपस्थिति एक ऐसी गाथा बन गई, जिसे लोग सदियों तक याद रखेंगे। मरीजों की शिकायतें अब शिकायतें नहीं, बल्कि एक हास्य का विषय बन गईं। और डॉक्टर साहब, वे हमेशा की तरह अपने रहस्यमय अंदाज में अस्पताल आते-जाते रहे, जैसे कोई सुपरहीरो हो, जिसे अपनी पहचान छुपानी हो।
तो यह थी जिला अस्पताल की कहानी, जहाँ डॉक्टर साहब की अनुपस्थिति ने मरीजों के जीवन में हंसी और मजाक का तड़का लगाया। उम्मीद है कि आपको यह हास्य-व्यंग्य पसंद आया होगा और आप भी मुस्कुराए होंगे।
इस हास्य-व्यंग्य का मुख्य उद्देश्य जिला अस्पताल में डॉक्टरों की समय पर अनुपस्थिति के कारण मरीजों को हो रही परेशानियों पर ध्यान आकर्षित करना है। इसे हास्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करने के पीछे का मकसद यह है कि गंभीर मुद्दों को भी कभी-कभी हंसी-ठिठोली के माध्यम से उजागर किया जाए ताकि लोग उसे आसानी से समझ सकें और उस पर विचार कर सकें। इस व्यंग्य के माध्यम से निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने की कोशिश की गई है:
1. समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करना : हास्य के माध्यम से इस गंभीर समस्या पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना कि कैसे डॉक्टरों की अनुपस्थिति से मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
2. समाज को जागरूक करना : हास्य-व्यंग्य के जरिए समाज को इस मुद्दे के प्रति जागरूक करना और यह बताना कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की कितनी आवश्यकता है।
3. मनोरंजन और संदेश : लोगों का मनोरंजन करते हुए उन्हें यह संदेश देना कि समस्याओं को हल्के-फुल्के अंदाज में भी गंभीरता से लिया जा सकता है।
4. व्यवस्था पर प्रश्न उठाना : हास्य के माध्यम से व्यवस्था पर प्रश्न उठाना और सुधार के लिए प्रेरित करना।
5. ध्यानाकर्षण और कार्रवाई : प्रशासन और संबंधित अधिकारियों का ध्यान इस समस्या की ओर आकर्षित करना ताकि वे इस पर उचित कार्रवाई कर सकें।
इस प्रकार, यह हास्य-व्यंग्य न केवल हंसी-मजाक का माध्यम है, बल्कि एक गंभीर संदेश भी देने का प्रयास है जिससे समाज और प्रशासन इस पर विचार कर सकें और सुधार की दिशा में कदम उठा सकें।
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