लाली कौन खा गया? 7 साल की बच्ची, श्मशान में कंकाल और नेता बोले— नार्को टेस्ट में खर्चा आता है! , 7 साल की मासूम की गुमशुदगी से नरबलि तक, क्या सच में तंत्र-मंत्र की बलि बनी मासूम लाली?

अरविंद कुमार
मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले का कोसाबाड़ी गांव इन दिनों एक रहस्य और डर का पर्याय बन चुका है। सात साल की मासूम बच्ची माहेश्वरी गोस्वामी उर्फ ‘लाली’ की रहस्यमयी गुमशुदगी और फिर लगभग एक महीने बाद श्मशान घाट के पास मिले मानव कंकाल ने पूरे इलाके को सन्न कर दिया है। 11 अप्रैल की रात दो बजे, जब मासूम लाली अपनी मां के साथ घर के आंगन में सो रही थी, तब किसी ने उसे अगवा कर लिया। अब तक की जांच में सामने आए तथ्यों से शक की सुई नरबलि और तंत्र-मंत्र की ओर घूम रही है। 6 मई को लाली के घर से महज 100 मीटर दूर श्मशान घाट के पास खेत की मेढ़ से मिला कंकाल इसी आशंका को बल दे रहा है। सिर धड़ से अलग, पसलियां, बाल और अंडरवियर... क्या यह इत्तेफाक है या किसी राक्षसी रिवाज का परिणाम?

डीएनए और नार्को टेस्ट से खुलेगा रहस्य
कंकाल के अवशेषों के डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल सिम्स बिलासपुर भेजे गए हैं। वहीं कोर्ट ने अब लाली के माता-पिता और भाभी के नार्को टेस्ट की अनुमति भी दे दी है। पुलिस इस जांच को लेकर बेहद सतर्क है। खुद एसपी भोजराम पटेल मामले की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। उन्होंने साफ कहा है कि निर्दोष पर कार्रवाई नहीं होगी लेकिन सच को उजागर करना प्राथमिकता है।

क्या मासूम की बलि चढ़ा दी गई?
जिस रात लाली गायब हुई, वो पूर्णिमा की रात थी। ऐसे में यह मामला अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र से जुड़ी नरबलि की तरफ इशारा करता है। क्या यह इलाका किसी काले रहस्य से जकड़ा हुआ है?


प्रशासन का मौन, विपक्ष का आक्रोश
इस मामले ने अब सियासी रंग भी पकड़ लिया है। 20 अप्रैल को कांग्रेस ने ‘बेटी बचाओ, न्याय यात्रा’ निकाली थी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने लोरमी थाने का घेराव कर प्रशासन पर निष्क्रियता का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा, यदि पुलिस समय रहते सक्रिय होती, तो आज लाली साथ होती।

इनाम और बयान, पर बच्ची नहीं मिली
इस पूरे प्रकरण में लाली की जानकारी देने वालों को प्रशासन और समाजसेवियों ने 1.4 लाख रुपए तक का इनाम घोषित किया है। लेकिन सवाल अब भी वहीं है— लाली कहां है? कोसाबाड़ी में माताएं अब अपने बच्चों को डर से अकेले नहीं छोड़ रही हैं। गांव में भय है, सन्नाटा है, और कई अधूरे सवाल हैं।

एक पत्रकार की कड़वी सच्चाई, हर अपराधी का नार्को टेस्ट क्यों नहीं होता?
जब हमने मन तटोलने सवाल पूछा तो कांग्रेस नेता बोले — आप जानते हो, इसमें कितना खर्चा आता है?
क्या न्याय अब बजट देखकर तय होगा?

हमने मनतटोलने सीधा सवाल पूछा —
अगर कोई मर्डर करता है, बलात्कार करता है या मासूम बच्ची की बलि देता है — तो क्या उसका नार्को टेस्ट नहीं होना चाहिए?

इस सवाल के जवाब में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता, जो इन दिनों विपक्ष की भूमिका में हैं, ने कहा — आपको पता है नार्को टेस्ट में कितना खर्चा आता है? उसकी प्रक्रिया कितनी लंबी होती है?

ये जवाब सुनकर एक बार को रुकना पड़ा...
क्या वाकई अब हम न्याय का रास्ता खर्च और प्रक्रियाओं से तय करेंगे?

नार्को टेस्ट क्यों जरूरी है?
हर गंभीर अपराध में सच्चाई को बाहर लाना आसान नहीं होता। आरोपी झूठ बोलते हैं, बयान बदलते हैं, डराते हैं, गुमराह करते हैं।
ऐसे में नार्को एनालिसिस एक वैज्ञानिक तकनीक है जो व्यक्ति को अर्धचेतन अवस्था में लाकर असली बात बाहर निकालती है। जब कोई मर्डर करता है, किसी बच्ची को अगवा करता है, उसकी बलि दी जाती है — तो क्या हम सिर्फ बयानबाजी पर भरोसा करेंगे?
या फिर सच्चाई को बाहर लाने के लिए वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करेंगे?

कितना खर्च आता है नार्को टेस्ट में?
नेता जी का कहना था कि इसमें खर्चा बहुत आता है —
लेकिन आइए, हम तथ्य देखें:

नार्को टेस्ट में औसतन 25,000 से 60,000 रुपये तक खर्च आता है।
यह खर्च कोर्ट की अनुमति, मेडिकल टीम, दवाइयों, और फोरेंसिक जांच आदि पर होता है।
अब सोचिए — जब किसी मामले में सैकड़ों, हजारों, लाखों लोगों का विश्वास जुड़ा हो, या जब एक मासूम की जिंदगी दांव पर हो — तो क्या ये खर्च बहुत ज़्यादा है?

क्या नेता अपने लिए खर्च नहीं करते?
जब चुनाव आता है, तो नेताओं के मंच पर करोड़ों खर्च होते हैं।
हेलीकॉप्टर से आना-जाना, बड़े-बड़े बैनर, होटल, प्रचार —
तब कोई नहीं कहता कि, खर्चा ज्यादा है।
लेकिन जब एक गरीब की बच्ची या बच्चा मर जाए, और हम जांच की मांग करें — तब कहा जाता है, नार्को टेस्ट में बहुत खर्चा आता है!

क्या हर अपराधी का नार्को टेस्ट नहीं होना चाहिए?
हां होना चाहिए।
क्योंकि जब कोई मासूम मारी जाती है, कोई महिला अत्याचार की शिकार होती है, जब कोई मर्डर कर अन्य को फसाया जाता है, या कोई दलित झूठे केस में फंसाया जाता है - तो केवल कोर्ट और पुलिस पर छोड़ देना काफी नहीं।
ऐसे मामलों में नार्को टेस्ट सच्चाई तक पहुंचने का सीधा रास्ता है। अगर हर अपराधी को पता होगा कि उसका नार्को टेस्ट होगा — तो शायद वह अपराध करने से पहले दस बार सोचेगा।

नेता से सवाल, जनता से अपील
जब हमने यह सवाल किया, तो हमें जवाब मिला —
आप जानते हो इसमें कितना खर्चा होता है?
हम पूछते हैं —
क्या 25-60 हज़ार रुपये की जांच से डर कर हम किसी के खून का राज छिपा देंगे?
क्या यह देश अब न्याय नहीं, खर्च देखकर काम करेगा?
हर मर्डर, बलात्कार, बलि, अपहरण जैसे गंभीर मामलों में नार्को टेस्ट अनिवार्य होना चाहिए।
विपक्ष में बैठे नेताओं को जवाबदेह होना चाहिए, न कि बहानेबाज़। अगर एक नेता यह कहे कि खर्चा ज्यादा है, तो जनता को सोचना होगा कि किसके लिए राजनीति की जा रही है — सत्ता के लिए या जनता के लिए?

श्मशान से मिला एक कंकाल... और कांग्रेस नेता की दबी जुबान। सवाल ये है — क्या वाकई ये वही लाली है जो एक महीने पहले गायब हुई थी? क्या 30 दिनों में एक मासूम का शरीर इतना सड़ सकता है कि पहचान तक बाकी न बचे? या फिर ये किसी सोची-समझी साजिश का हिस्सा है? वहीं कांग्रेस नेता ने कोसाबाड़ी मामले पर अन्य जानकारी पूछने पर 2 दिन बाद बताने कहा गया है। 

आपका क्या कहना है?
क्या आपको भी लगता है कि हर अपराधी का नार्को टेस्ट जरूरी होना चाहिए?

लाली अब इस समाज की एक तस्वीर बन चुकी है— जहां इंसान को इंसाफ के लिए डीएनए और नार्को की जरूरत पड़ती है, और जहां तंत्र-मंत्र की आड़ में बेटियों की बलि दी जाती है। यह केवल एक गांव की खबर नहीं, पूरे समाज की चेतावनी है। 
अब सवाल देश से है: क्या हम फिर एक 'नरबलि' को चुपचाप भूला देंगे, या इस बार कोई लाली आखिरी नहीं होगी?
आपका क्या कहना है?


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