चिंता और उम्मीद की दो तस्वीरें: मुंगेली की शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल, 12वीं में हाथ खाली लेकिन 10वीं में गीतिका वर्मा ने जगाई नई उम्मीद

मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । छत्तीसगढ़ का मुंगेली जिला इस समय शिक्षा जगत में चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल ही में आए 12वीं बोर्ड परीक्षा के नतीजों में जिले का एक भी छात्र टॉप-10 में जगह नहीं बना सका, जिससे जिला प्रशासन, स्कूल प्रबंधन और समाज के बीच चिंता की लहर दौड़ गई है। लेकिन इस निराशाजनक माहौल में 10वीं कक्षा की छात्रा गीतिका वर्मा ने जिले का मान बढ़ाया है — उसने टॉपर्स की सूची में अपना नाम दर्ज कर मुंगेली को सुर्खियों में ला दिया है।
यह दोहरी तस्वीर कई अहम सवाल खड़े करती है, क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था में 10वीं के बाद तैयारी कमजोर हो जाती है? क्या 12वीं के छात्र सही मार्गदर्शन से वंचित रह जाते हैं? और क्या हम आने वाली पीढ़ी को एक संतुलित और समृद्ध भविष्य देने में नाकाम हो रहे हैं?

12वीं बोर्ड: खाली हाथ लौटे छात्र, कहाँ हुई चूक?
मुंगेली जिले की शिक्षा व्यवस्था पर अगर नजर डालें तो स्थिति पिछले कुछ वर्षों से चिंताजनक बनी हुई है। जिले के कई सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है — एक ही शिक्षक को कई विषयों की जिम्मेदारी संभालनी पड़ती है। प्रयोगशालाओं का अभाव, पुरानी किताबें, और डिजिटल संसाधनों की अनुपलब्धता बच्चों को आज की प्रतिस्पर्धा में पीछे धकेल रही है। निजी स्कूलों में भी समस्या कम नहीं है। वहाँ पढ़ाई का पूरा जोर नंबर लाने पर होता है, न कि समझ और क्रिएटिविटी पर। बच्चों पर माता-पिता और स्कूल का दबाव इतना ज्यादा होता है कि वे रटने की दौड़ में उलझ जाते हैं और असली ज्ञान से दूर होते जाते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, 12वीं के छात्र मानसिक दबाव, कोचिंग की कमी और करियर की उलझनों के कारण अक्सर सही दिशा नहीं पकड़ पाते। इसके अलावा, बड़े शहरों में जहां बच्चे करियर काउंसलिंग और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी से आगे निकल जाते हैं, वहीं छोटे जिले इस दौड़ में पिछड़ जाते हैं।

10वीं बोर्ड: गीतिका वर्मा की कामयाबी में छुपी सीख
इसी परिदृश्य में गीतिका वर्मा की 10वीं बोर्ड परीक्षा में कामयाबी एक ताजी हवा का झोंका लेकर आई है। गीतिका ने सिर्फ़ अच्छे अंक ही नहीं लाए, बल्कि जिले के बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। गीतिका की जीत यह संदेश देती है कि जब स्कूल, घर और छात्र एकजुट होकर काम करते हैं, तो संसाधनों की कमी भी बड़े नतीजों को रोक नहीं सकती।

       समाज और प्रशासन के लिए संदेश
इस पूरी स्थिति में समाज और प्रशासन दोनों की भूमिका अहम हो जाती है। मुंगेली को 12वीं के छात्रों के लिए बेहतर तैयारी का माहौल देना होगा:
सरकारी स्कूलों में पर्याप्त शिक्षकों की नियुक्ति
स्मार्ट क्लास, ई-लर्निंग और डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता
मुफ्त या सस्ती कोचिंग सुविधाएं
करियर काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान
रटने की संस्कृति से हटकर समझ आधारित शिक्षा का जोर
अभिभावकों को भी यह समझना होगा कि नंबरों का दबाव कम करके बच्चों को सीखने और समझने का अवसर दें। उन्हें प्रतियोगी माहौल में टिकने की तैयारी करनी होगी, सिर्फ़ स्कूल की किताबों तक सीमित रहकर नहीं।

         शिक्षा विभाग की भूमिका
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग को यह गंभीरता से सोचना चाहिए कि छोटे जिलों के बच्चे बड़े शहरों के मुकाबले क्यों पिछड़ जाते हैं। क्या उनके लिए कोई स्पेशल स्कॉलरशिप प्रोग्राम, ऑनलाइन क्लासेस, या ट्रेनिंग कैम्प्स शुरू किए जा सकते हैं? क्या स्कूलों में सिर्फ वार्षिक परीक्षा के बजाय हर 3-4 महीने में प्रैक्टिस टेस्ट और स्किल बिल्डिंग सेशन्स आयोजित किए जा सकते हैं?

           भविष्य की राह: बदलाव की शुरुआत
मुंगेली के लिए यह समय सिर झुकाने का नहीं, बल्कि खुद को टटोलने और सुधार की दिशा में बढ़ने का है। गीतिका वर्मा जैसे उदाहरण यह साबित करते हैं कि उम्मीद बाकी है। ज़रूरत है कि अगले साल की 12वीं परीक्षा के नतीजे बदलने के लिए आज से काम शुरू किया जाए।

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