मुंगेली । छत्तीसगढ़ प्रसार । यह बात तो सत्य है कि गाँवों में घर के पीछे जो बाड़ी होती है, वह हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा होती है। वह जगह, जहाँ हम अपना भोजन उगाते हैं, सब्जियों के पौधे लगाते हैं और फूलों की क्यारियाँ सजाते हैं। लेकिन इस शांति को तोड़ने के लिए बंदर नामक प्राणी से बढ़िया कोई नहीं। ये जीव अपने उत्पात के कारण ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं। अगर आप सोच रहे हैं कि मैं यहाँ बंदरों की बुराई कर रहा हूँ, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैं तो बस उनका परिचय करा रहा हूँ, और यह भी बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि पर्यावरण में उनका योगदान कितना अद्भुत है। गाँव में रहते हुए, एक बाड़ी की देखरेख करने में जितनी मेहनत लगती है, उससे कहीं ज्यादा मेहनत बंदरों को भगाने में लगती है। मैंने कितनी बार देखा है कि बंदर सुबह-सुबह घर की बाड़ी में धावा बोलते हैं। वे भिंडी, लौकी, बरबट्टी, खीरा, कद्दू, चेचभाजी, सेमी, भुट्टा ,आम, अमरूद, केले—हर तरह के सब्जी और फल तोड़ते हैं, खाते हैं, और फिर आराम से पेड़ पर बैठकर हमें चिढ़ाते हैं। अगर किसी ने उन्हें भगाने की कोशिश की, तो समझिए कि वह व्यक्ति अब पेड़ के नीचे बंदरों की छूटे हुए फलों के ढेर में बैठा है।
बंदरों का उत्पात सिर्फ फलों तक सीमित नहीं है। वे तो सब्जियों के पौधे भी उखाड़ फेंकते हैं। चाहे वह मिर्ची का पौधा हो या फिर टमाटर का, कोई भी सुरक्षित नहीं रहता। यहां हर हफ्ते में 5 दिन मैंने देखा कि बंदर मेरे घर के बाड़ी में घुसकर लौकी के फल को खा रहा था। मैंने जोर से चिल्लाकर उसे भगाने की कोशिश की, लेकिन वह बंदर मुझ पर ही मुँह बिचकाने लगा। लगता है कि वह कहना चाहता हो, "तुम्हारा क्या जाएगा? लौकी उगाएगा, फिर से उगा लेगा। लेकिन मुझे भी तो पेट भरना है।"
अब यहाँ एक सवाल उठता है कि बंदर ऐसा क्यों करते हैं? क्या उन्हें घर के बाड़ी के प्रति इतनी घृणा है? या फिर यह उनका कोई मिशन है, जिससे वे हमारे सब्जियों और फलों को बर्बाद कर पर्यावरण में संतुलन बनाए रखते हैं? वैसे, पर्यावरण की बात की जाए तो बंदर पर्यावरण के प्रति बहुत ही जागरूक होते हैं। वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि कोई भी पौधा अधिक मात्रा में न बढ़े और हर जगह पौधों का समान वितरण हो। लेकिन मजाक से परे, यह बंदरों का उत्पात हमारे पर्यावरण पर कैसे प्रभाव डालता है? एक तरफ, वे हमारी मेहनत को मिट्टी में मिला देते हैं, तो दूसरी तरफ, वे पेड़ों पर चढ़कर हमारी खेती-बाड़ी में एक नया दृष्टिकोण लाते हैं। यदि आपने कभी देखा हो कि एक बंदर केले का गुच्छा लेकर पेड़ पर चढ़ा है, तो आप समझ सकते हैं कि वह गुच्छा कितनी मेहनत से उगाया गया था। और बंदर उसे चुराकर खा जाते हैं। यह दृश्य तो शायद ही किसी किसान के लिए सुखद हो। लेकिन पर्यावरण के लिए यह उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना हमारे लिए।
बंदरों का उत्पात जहाँ एक तरफ हमारी मेहनत को नष्ट करता है, वहीं दूसरी तरफ, यह पर्यावरण में जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करता है। वे फलों के बीजों को यहाँ-वहाँ फेंकते हैं, जिससे नए पौधे उगते हैं और जंगलों का विस्तार होता है। बंदर अपने स्वभाव से ही बीज वितरण के मुख्य माध्यम होते हैं। वे जहाँ-जहाँ जाते हैं, वहाँ-वहाँ नए पौधों का बीजारोपण होता है। अब, अगर कोई मुझसे पूछे कि मैं बंदरों को अपने घर की बाड़ी से कैसे दूर रखता हूँ, तो मेरा जवाब होगा—यह संभव नहीं है। बंदर इतने चालाक होते हैं कि वे हर उपाय को मात दे देते हैं। चाहे आप कितना भी चिल्लाएं, लाठी लेकर दौड़ाएं, या फिर बाड़ी के चारों ओर कोई अवरोध लगाएं, वे फिर भी आ ही जाएंगे।
बंदरों का उत्पात देखकर हमें यह भी समझना चाहिए कि वे भी इस धरती के निवासी हैं और उनके भी अपने अधिकार हैं। अगर हम अपनी बाड़ी में सब्जियाँ उगाते हैं, तो वे भी अपनी भूख मिटाने के लिए यहाँ आते हैं। हमें उनके साथ सह-अस्तित्व की भावना से रहना चाहिए। हालांकि, यह सह-अस्तित्व कभी-कभी हमारे धैर्य की परीक्षा लेता है। एक दिन, जब मैं अपनी बाड़ी में नए पौधे लगाने की तैयारी कर रहा था, तभी बंदरों का एक झुंड आ धमका। वे मेरे द्वारा लगाए गए पौधों को उखाड़ने लगे और मेरे सारे प्रयासों को नष्ट कर दिया। उस समय मुझे लगा कि मैं अपने धैर्य को खो दूँगा। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि यह भी तो प्रकृति का एक हिस्सा है। बंदरों का यह उत्पात शायद हमें यह सिखाता है कि हमें हर हाल में अपने धैर्य को बनाए रखना चाहिए।
तो, अगर आप कभी गाँव में जाएं और घर की बाड़ी में बंदरों का उत्पात देखें, तो समझ लें कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह एक ऐसा अनुभव है जो आपको यह सिखाता है कि जीवन में सब कुछ हमारे नियंत्रण में नहीं है। कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं जो हमारे समझ से परे हैं। बंदरों का उत्पात और पर्यावरण का आपसी संबंध हमें यह बताता है कि हमें अपनी प्रकृति को समझना चाहिए और उसके साथ सामंजस्य बिठाना चाहिए। यह हास्य व्यंग्य का विषय तो है ही, साथ ही यह हमारे जीवन के उस हिस्से को भी उजागर करता है जो हमें प्रकृति के करीब लाता है। अंत में, मैं यही कहूँगा कि बंदरों का उत्पात एक तरह से हमारे जीवन में मिठास लाता है। वे हमारी बाड़ी में तबाही मचाते हैं, लेकिन साथ ही, वे हमें हँसने का और जीवन को हल्के में लेने का मौका भी देते हैं। इसलिए, अगर अगली बार बंदर आपके घर की बाड़ी में उत्पात मचाएं, तो उन्हें भगाने की कोशिश न करें। बस बैठकर उनका तमाशा देखें और हँसें, क्योंकि यही तो जीवन का असली मज़ा है।
बंदरों को क्या गरीब व्यक्ति बाड़ी के सब्जी को खाने दे
जब बंदरों की बात आती है, तो गरीब व्यक्ति की बाड़ी में उगाई गई सब्जियों का महत्व और भी अधिक हो जाता है। बाड़ी में उगाई गई सब्जियाँ उस व्यक्ति के लिए भोजन का मुख्य स्रोत हो सकती हैं, और ऐसे में बंदरों का आकर उन सब्जियों को नष्ट करना उसके लिए बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है।
गरीब व्यक्ति के लिए यह बहुत कठिन स्थिति हो जाती है। एक तरफ, वह अपनी मेहनत से उगाई गई सब्जियों को बचाने की कोशिश करता है, ताकि उसका और उसके परिवार का पेट भर सके। दूसरी तरफ, बंदर अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार भोजन की तलाश में उसकी बाड़ी में उत्पात मचाते हैं।आमतौर पर, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह गरीब हो या अमीर, बंदरों को अपनी बाड़ी की सब्जियाँ यूँ ही खाने नहीं देगा, क्योंकि यह उसके अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा है। गरीब व्यक्ति के पास संसाधन सीमित होते हैं, और बाड़ी में उगाई गई सब्जियाँ उसकी मेहनत का फल होती हैं। ऐसे में वह अपनी पूरी कोशिश करता है कि बंदरों को भगाया जाए और सब्जियाँ सुरक्षित रहें।
हालाँकि, कई बार स्थिति ऐसी होती है कि बंदरों को पूरी तरह से रोक पाना संभव नहीं होता। बंदर बहुत चालाक और हठी होते हैं, और कई बार, सभी प्रयासों के बावजूद, वे सब्जियाँ खाने में सफल हो जाते हैं। ऐसे में, गरीब व्यक्ति को मजबूरी में यह नुकसान सहना पड़ता है। तो, असल में, कोई गरीब व्यक्ति अपनी बाड़ी की सब्जियों को बंदरों के लिए खाने के लिए नहीं छोड़ना चाहेगा, लेकिन अगर वह उन्हें रोकने में असमर्थ होता है, तो उसे परिस्थितियों के साथ समझौता करना पड़ता है। यह उसके लिए एक कठिन और कभी-कभी हताशाजनक स्थिति होती है, लेकिन वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता है कि उसकी मेहनत बर्बाद न हो।
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